कुछ खोज रही थी शायद मैं,
किसी चीज़ की मुझे तलाश थी
मन में उठे उस आक्रोश को,
दबाने की मुझे तलाश थी

हर क्षण, हर बीतते पल में रोष बढ़ता ही जा रहा था,
मन के अच्छे से एक इंसान को वो खाये जा रहा था
इस दानव को हराने के लिये,
न जाने किस चीज़ की तलाश थी
लेकिन पूरा यकीं है मुझे कि
मुझे मन की शांति की तलाश थी

वेदना को जो हर ले, शोर को जो आवाज़ बना दे
गुस्से में आयी माथे की उन झुर्रियों को,
जो मेरे चेहरे की प्यारी हँसी बना दे
न मुझे थी अपने लिये, न ही इस दुनिया की खातिर
बस आत्मा को मेरी आराम की तलाश थी
यकीन होना स्पष्ट था कि
मेरे मन को सुकून की तलाश थी

हाँ, परेशान करता है सबको
जिसे क्रोध ये दुनिया कहती है
अड़ कर एक तूफान की भांति,
ये जो रिश्तों में प्रलय सी बहती है
हाँ, नाराज़ थी मैं खुद से
मुझे खुद ही से मिलने की तलाश थी
क्यूँ जलूं मैं इस अग्नि में
इसके बुझ जाने की मुझे तलाश थी
हाँ,विश्वास है मुझे,मुझे बिखर कर सिमटने की तलाश थी

One Comment

  1. खोज | Towards Literature March 24, 2023 at 3:42 pm - Reply

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