हर रोज पढ़ने की सोचती हूँ
कि कुछ तो लिखा होगा,
मेरे मन के किसी कोने में;
किसी याद का होना,
मेरा छोटी-छोटी बात पर रोना,
या बेवजह ही मेरा अत्यंत खुश होना,
हो सकता है, किसी प्यारी चीज का खोना
नहीं, खोना शब्द तो मेरे शब्दकोश में नहीं
फिर क्या है वो
जिसने पलकों से छीन लिया
मेरा रातो में सोना

मैं बेवजह ही बिलखती हूँ;
कभी कोई चीज बहुत चुभती है,
कभी मेरा अपना ही स्वभाव,
कभी तन्हाई साथ आ पसरती है,
मैं हँसती हूँ पहले की भांति ही
ना हंसने वाली बात पर भी
लेकिन क्या है वो
जिसने मेरे मन को
बैचैन किया फिर भी

चलो जाने भी दो
ये शिकायतो का समय नहीं
मुझे भी रहते हैं सौ काम
वक्त तुम्हारा भी मुफ्त नहीं
फिर क्यूं सोचती रहती हूँ;
कि मै इतनी भी निष्ठुर नहीं हो सकती
कि किसी बात का कोई असर ना हो
फिर खुद को ही उत्तर देती हूँ,
“शायद किसी बात ने इतना असर किया
कि अब किसी मार का भी कोई असर नहीं”

2 Comments

  1. तलाश | Towards Literature March 19, 2023 at 8:42 am - Reply

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  2. बचपन | Towards Literature March 19, 2023 at 6:55 pm - Reply

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