एक रोज मिले थे हम
इस जग से परे एक संसार में
बेपरवाह-सा हर कदम था
उस अपने-से संसार में
सुंदरता उस जहां की
अमिट थी और मतवाली भी
निस्पृह थी हर एक भावना
भय के जंजाल से
जहाँ हंसना और मुस्कुराना
हमारा मनपसंद कृत्य था
वहाँ बसता अपना एक आशियाना
दूर इस जग के विचार से
बचपन का वो प्रेम
कितना पावन और असीम था !!!
चलो ना एक सांझा कर ले
खुशी से चल लौट चले
बचपन के उस बागान में
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