
in frame: Devyani Chandra Jha
एक सपना है मेरा
एक सपनों की दुनिया मैं भी बनाऊ
मिलूं न ढूंढे से भी किसी को
उसमे मैं इतनी खो जाऊ
मगर वो कहते हैं, “सपने कहाँ सच होते है”!
होते हैं, पर उन पर अपने कहाँ हक होते हैं !
ऐसी प्रचलित; शायद, सच्ची बातो को
मैं मिथ्या सिद्ध कर पाऊ
एक सपना है मेरा
एक सपनों की दुनिया मैं भी बनाऊ
रोज-रोज के क्षोभ को एक दिन
एक दिन तो विराम लगे
मन कहे, मुझे आराम है
आत्मा को भी चैन मिले
भाग दौड़ के जीवन को
कोलाहल के बिगुल को
मैं अनदेखा, अनसुना कर जाऊ
एक सपना है मेरा
एक सपनों की दुनिया मैं भी बनाऊ
इधर भी आंधी उधर भी आंधी
मध्य तो तूफ़ान ही है
कोई तो छोर होगा इस जग का
जहाँ भटके को विश्राम भी है
ऐसी एक ठौर ढूंढ कर
मैं वहीं कहीं पर बस जाऊ
एक सपना है मेरा
एक सपनों की दुनिया मैं भी बनाऊ
Beautiful
❤💖
Well done keep it up
keep it up
[…] Another Poem […]
This poem express my emotions smoothly ✨✨
Wow.. so true.. i think we all can connect to it..
This is beautiful ❤️