
In Frame: Srishti Jain
भविष्य का मनन मुझे अच्छा नहीं लगता
अन्यों के विरोधाभास में;
मुझे पसंद है अतीत की स्मृतियाँ
फिर चाहे वो मृदुल हो
या हृदय चीर देने वाली
मुझे नित्य ही उनका स्मरण प्रफुल्लित करता है
वरन एक जिज्ञासा उठती है मन में
उन अटल स्मृतियों को परिवर्तित करने की
मैंने सदा एक दोषहीन जीवन की ही कल्पना की है
हाँ, मानव होते हुए भी एक दोषहीन जीवन की
अतएव, मैंने सदैव उन बुरी यादो को
परिणत करना चाहा
उन स्मृतियों को विस्मृति करना चाहा
जानती हूँ, असंभव है
विगत अनुस्मरणों को बदलना
मगर अथाह प्रयास रहता है मेरा
जीवन को निपुण बनाने में
मुझे संपूर्णता में विश्वास है
त्रुटियाँ मुझे जगाती नहीं बल्कि अचरज में डालती है
मेरे जीवन में इनका मिश्रण मुझे कर्कश लगता है
भ्रंश मुझे कतई पसंद नहीं
लेखन में हो तो मिटा देती हूँ,
संदेश में हो तो हटा देती हूँ,
कथनों और वचनों में हो तो क्षमा याचना कर लेती हूँ
मगर ये सब सुकर नहीं
जीवन को निपुण, निष्कपट, लेकिन सरल बनाने में
अनेको संघर्षो, आलोचनाओ,
और न जाने कितने मनमुटावो से जूझना पडता है,
अनगिनत तानो को सहना पड़ता है
कभी-कभी तो अपने से ही लड़ना पडता है
संपूर्णता का यह आवेश ही
भविष्य के भय से मेरी रक्षा करता है
मैं वर्तमान में ही जीती हूँ;
मर-मर कर ही सही !
अतीत की सुखद स्मृतियों के साथ……..
Beautifully presented.
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